Why farmers should adopt drip irrigation
ड्रिप सिंचाई क्या हैं ? यह सिंचाई का तरीका हैं जो पाणी की बचत करता हैं और यह पौधे या पेड की जड में पाणी के धीरे-धीरे सोखने में ( चाहे वो पौधे के उपर वाली मिट्टी हो या फिर जड हो ) मदत कर याद और उर्वरक के अधिकतम उपयोगी इस्तेमाल में मदद करता हैं|
ड्रिप सिंचाई वॉव्ल्स , पाईप, ट्युब्स और एमीटर्स से जुड़े एक नेटवर्क की मदद से कार्य करता हैं । यह काम संकरे ट्युब्स से जोडकर किया जाता हैं जो पौधे या पेड लि जड तक पाणी को सीधे पहुंचाता हैं| ड्रिप सिंचाई व्यवस्था में माईक्रो-स्प्रे हेड्स तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता हैं|
यह मशीन एमीटर्स के मुकाबले पाणी को छोटे सें क्षेत्र में फैलाता हैं| आमतौर पर इस के स्प्रे हेड का इस्तेमाल लंबे-चौडे जड वाली शराब का उत्पादन की जाने वाली फसलों और पेड़ों के लिए किया जाता हैं जिसके जड़े व्यापक रूप से फैली होती हैं|
कम पाणी की उपल्बधता या रीसाईकिल्ड या पुनरावर्तित पाणी इस्तेमाल में सब सरफेस (उप सतह) ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल किया जाता हैं| इसमे स्थाई या अस्थाई गड़ें हुए ड्रिपर लाईन या ड्रिप टेप जो पौधे की पास या नीचे स्थित होते हैं उसका इस्तेमाल किया जाता हैं|
अनुकूल ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का पट लगानेके लिए कुछ तत्वों का ध्यान रखना चाहिये, जैसे कि, भुमि स्थ्लाकृति, मिट्टी, पाणी, फसल और कृषि जलवायु स्थिति | अधिकांश खेती करणे के तरीकों में ड्रिप व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा सकता हैं, जैसे की, व्यावसायिक ग्रीन हाउस खेती, आवासीय उद्यानों, पॉलीहाउस खेती, शेड नेट फार्मिंग, जलकृषि और खुले खेत में खेती |
फव्वारा सिंचाई ( स्प्रींल्कर इरिगेशन ) व्यवस्था से तुलना करें तो ड्रिप सिंचाई ज्यादा फायदेमंद साबित होगा | अपशिष्ट पाणी के इस्तेमाल के दौरान ड्रिप और उपसतह ड्रिप सिंचाईका इस्तेमाल किया जाता है|
आमतौर पर बड़ी ड्रिप सिंचाई व्यवस्था में फिल्टर्स लगे होते हैं जो छोटे एमीटर के बहाव के रास्ते में पाणी जनित पदार्थां के अवरोधकों को रोकता है| आज के दौर में ऐसे ड्रिप सिस्टम मिल रहे हैं जिसमे ज्यादा से ज्यादा अवरोधकों को रोकने की सुविधा होती है|
मौजुदा दौर में घर की बागवनी के लिए ड्रिप सिंचाई ड्रिप कीट के रूप में उपलब्ध है जो घर मालीकों के बीच मशहूर होता जा रहा है| इस कीट में एक टाइमर, हौज और एमीटर होता है|
ड्रिप सिंचाई में इस्तेमाल होणे वाले घटक –
ड्रिप सिंचाई व्यवस्था में इस्तेमाल होने वाले घटक निम्न हैं-
- पंप
- फिल्टरेशन यानी छानने की व्यवस्था जैसे की वाटर फिल्टर, बालु फिल्टर (बालू अलग करना ), फर्टीगेशन व्यवस्था (सिंचाई वाले पाणी में तरल खाद मिलाने की प्रक्रिया)
- दबाव नियंत्रक ( जैसे, दबाव नियंत्रक वॉल्व या रेगुलेटर )
- बैक वाटर ( प्रतीप या अप्रवाही जल ) के प्रवाह को रोकनेवाली इकाई
- बड़ी पाईप और पाईप फिटिंग्स (मुख्य लाईन पाईप)
- हाइड्रोलिक या जलीय नियंत्रक वॉल्व और सेफ्टी वाल्व्स
- लेटर्ल्स (कम मोटाई वाले पॉली ट्यूब्स)
- ड्रिप कनेक्शन के लिए पॉली फिटिंग्स और सहायक सामग्री
- एमीटर्स या डिपर्स, माईक्रो स्प्रे हेड, इन-लाईन ड्रीपर या इन-लाईन ड्रिप ट्यूब्स
ड्रिप सिंचाई के फायदे
ड्रिप सिंचाई के निम्न फायदे हैं –
- पाणी उपलब्धता की समस्या से जूझ रहे इलाके लिए फायदेमंद
- फसल की बंपर पैदावार और वक्त से पहले फसल तैयार होने की संभावना बढ़ जाती है
- सीमित इस्तेमाल की वजह से खाद और पोषक तत्वों के हा्स को कम करता है
- पानी का अधिकतम और बेहतरीन तरीके सें इस्तेमाल
- अंतरसांस्कृतिक या अंतरफसलीय कार्य को ड्रिप व्यवस्था आसान बनाता है
- पौधे की जड़ तक पाणी का वितरण एक समान और सीधे होता है
- घास-फूस को बढ़ने और मिट्टी के कटाव को रोकता है
- असमान आकार की भूमी या खेत में ड्रिप व्यवस्था का बहुत प्रभावकारी तरीके से इस्तेमाल हो सकता है
- बिना किसी परेशानी के पुनरावर्तित अपशिष्ट पाणी का इस्तेमाल किया जा सकता है
- पौधे और मिट्टी जनित बिमारियों के खतरे को भी कम करता है
- इसका संचालन कम दबाव में भी किया जा सकता है जिसमे ऊर्जा खपत में होणेवाले खर्च को भी किया जा सकता है
- खेती किये जाने योग्य जमीन की बराबर किये जाने की भी जरुरत नाही होती है
- एक समान पाणी वितरण होणे सें पौधे के जड़ क्षेत्र में एकसमान नामी की क्षमता को बनाए रखा जा सकता है
- खाद या सूक्ष्म पोषक तत्वों को कम से कम क्षति पहूंचाए फर्टीगेशन ( ड्रिप व्यवस्था के साथ खाद को सिंचाई वाले पाणी के साथ प्रवाहित करण ) किया जा सकता है
- वॉल्व्स और ड्रिपर की सहायता से पानी के कम या ज्यादा प्रवाह को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है
- ड्रिप व्यवस्था की वजह से सिंचाई की बारंबरता में मिट्टी के प्रकार की भुमिका बिल्कुल नगण्य होती है
- कुच मिलाकर ड्रिप व्यवस्था वक्त और धन दोनों की बचत करता है
ड्रिप सिंचाई के नुकसान
ड्रिप सिंचाई व्यवस्था के नुकसान निम्न है –
- ओवरहेड व्यवस्था के मुकाबले ड्रिप व्यवस्था का खर्च ज्यादा हो सकता है| हालांकी कोई भी स्थानीय सरकार की तरफ से दी जा रही सब्सिडी योजनाओं का फायदा उठा सकता है|
- छीड़काव व्यवस्था ( स्प्रींक्लर सिस्टम ) की तरह पाला नियंत्रण में ड्रिप व्यवस्था का इस्तेमाल नहीं हो सकता है |
- सूर्य की रोशनी की वजह से ड्रिप ट्यूब व्यवस्था की उम्र कम होती है |
- बिना उचित और पर्याप्त निक्षालन के ड्रिप की मदद से सिंचाई के पानी में नमक का इस्तेमाल से पौधे के जड़ क्षेत्र में नमक जमा हो सकता है |
- अगर तृणनाशक या उच्च क्षमता का खाद का इस्तेमाल किया जाता है तो छीड़काव सिंचाई की जरुरत पड़ती है, ऐसी स्थिती में ड्रिप व्यवस्था सटीक नहिं बैठती है |
- जब हम ड्रिप सिंचाई व्यवस्था तैयार करते है तो सही डिजाईन, उसे लगाने और गुणवत्तायुक्त सामान में बहुत ज्यादा देखभाल की जरुरत पडती है |
- ड्रिप टेप की वजह से निरंतर ज्यादा साफ-सफाई की जरुरत पडती है, इससे रख-रखाव का खर्च बढ़ सकता है |
ड्रिप सिंचाई बनाम छीडकाव सिंचाई –
छीडकाव सिंचाई के मुकाबले ड्रिप सिंचाई ज्यादा फायदेमंद होती है| छीडकाव व्यवस्था की मिम्न कमियां है |
- हवा और ज्यादा तापमान की वजह से छीडकाव व्यवस्था में पाणी का असमान वितरण हो जाता है |
- छिडकाव से सिंचाई व्यवस्था में वाष्पीकरण की वजह से पाणी बरबाद हो सकता है |
- छिडकाव व्यवस्था में पत्तियां (पौधे की पट पत्तियों का ढेर ) भीगजाती है | इससे बिमारीयों और फंगम के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है |
- उचित देखभाल के अभाव में मकान और उद्यानपथ में लगे स्प्रिंकलर स्प्रे एंगल जोड़ (फिक्सचर्स) को खराब कर सकते है |
भारतीय किसानों के लिए ड्रिप सिंचाई का खर्च
आमतौर पर ड्रिप सिंचाई सें पौधे की जड़ तक सिंचाई की जाती है जिसमे पाईप के नेटवर्क सें एमीटर्स जुड़े होते है | ऐमिटिंग यंत्र ड्रिपर्स, माईक्रो जेट्स, मिस्टर्स, फैन जेट्स, माईक्रो स्प्रिंकलर्स, माईक्रो स्प्रेयर्स, फोगर्स और एमीटींग पाईप्स हो सकते है जिन्हें एक निर्धारीत आधार पर पाणी के बहाव को तय किया जाता है | एमिटर्स का इस्तेमाल खास जरुरत पर निर्भर करता है जो अलग-अलग फसल के आधार पर बदल सकता है |
आमतौर पर ऐमिटिंग व्यवस्था को निर्धारीत करणे वाले तत्व, पाणी की जरुरत, पौधे की उम्र, पौधे के बीच की जगह, मिट्टी के प्रकार, पाणी की गुणवत्ता होती है | कभी-कभार माईक्रो-ट्यूब का भी इस्तेमाल एमीटर के तौर पर होता है, हलांकी यह पर्याप्त नही होता है |
धरातल और उपसतह सभी तरह की सिंचाई व्यवस्था माईक्रो सिंचाई व्यवस्था के तहत आता है| ड्रिप सिंचाई व्यवस्था को स्थापित करणे के लिये पुर्जा व्यवस्था की एक निर्देशक सूची की जरुरत पडती है जो ०.४ हेक्टेयर से ५ हेक्टेयर तक फैली होती है और जिसका टेबल नीचे दिया गया है | भारत में ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का अनुमानित खर्च रुपये में यहां दर्शाया गया है |
दुरी मीटर में | खर्च |
12 एम गुना 12 एम | 10,700 |
10 एम गुना 10 एम | 12,200 |
9 एम गुना 9 एम | 12,500 |
8 एम गुना 8 एम | 13,000 |
6 एम गुना 6 एम | 14,400 |
5 एम गुना 5 एम | 15,100 |
4 एम गुना 4 एम | 16,900 |
3 एम गुना 3 एम | 17,900 |
2.5 एम गुना 2.5 एम | 20,000 |
2 एम गुना 2 एम | 21,400 |
1.5 एम गुना 1.5 एम | 26,100 |
1 एम गुना 1 एम | 26,500 |
मुलत : ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का ईकाई खर्च पौधे के बीच दुरी और पाणी के श्रोत की जगह पर निर्भर करता है | दुसरा तथ्य है की ड्रिप व्यस्था का खर्च प्रत्येक राज्य में अलग–अलग पड़ता है| इसके अनुसार राज्यों का वर्ग्रीकरण तीन श्रेणी में किया गया है, “ए” “बी” और “सी” |
१.४.२००४ तक भारत के वैसे राज्य जहां १०,००० हेक्टेयर से ज्यादा के क्षेत्र ड्रिप सिंचाई के तहत है उन्हें एक श्रेणी में रखा गया है | इस श्रीणी में आंध प्रदेश, तेलंगणा, गुजरात कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तामिळनाडू जैसे राज्य शामिल है “ए” श्रेणी सें बाहर वाले राज्य और जो हिमालय क्षेत्र में आते है वो “बी” श्रेणी में आते है |
सभी पुर्वोत्तर राज्य, सिक्कीम,जम्मू और कश्मीर (जे एंड के ), उत्तरांचल, एचपी ( हिमाचल प्रदेश ), और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग का जिला “सी” श्रेणी के तहत आत है | “बी” श्रेणी वाले राज्यों में ड्रिप व्यवस्था में आने वाला खर्च “ए” श्रेणी के राज्यों के मुकाबले १५ से १६ फिसदी ज्यादा अनुमानित है|
जबकी “सी” श्रेणी के राज्यों में अनुमानित खर्च २५ से २६ फिसदी खर्च “ए” श्रेणी के राज्यों के मुकाबले ज्यादा है | अलग–अलग राज्यों में ड्रिप सिंचाई यवस्था में होनेवाला इकाई खर्च का विवरण नीचे दिया गया है-
राज्यों का वर्ग | अनुमानित खर्च, भारतीय रुपया/ हेक्टेयर |
ए | 40, 000 |
बी | 46,000 से 47,000 |
सी | 50,000 से 51,000 |
ड्रिप—————————-सिंचाई—————————- पर—————————- सब्सिडी
भारतीय किसानों/ उत्पादकों को मिलनेवाली सब्सिडी की जानकारी निम्नवत है। हालांकि आप स्थानीय बागबानी/ कृषि विभाग से कृषि ड्रिप व्यवस्था पर मिलने वाली वर्तमान सब्सिडी के बारे में जानकारी लेने के लिए संपर्क कर सकते हैं।
भारत में ड्रिप व्यवस्था में सब्सिडी की व्यवस्था केंद्र प्रायोजित और राज्य सरकार की योजनाओं में उपलब्ध है। किसान की जमीन की मात्रा के हिसाब से सब्सिडी की ये मात्रा अलग-अलग राज्यों में बदल जाती है।
ऐेसे किसान जिनके पास ढाई एकड़ तक सूखी जमीन हो या डेढ़ एकड़ की गीली जमीन हो वह सीमांत किसान कहलाते हैं और वो 90 फीसदी तक सब्सिडी के हकदार होते हैं। हालांकि सब्सिडी की यह मात्रा एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग होती है। इसकी जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी बागबानी/ कृषि विभाग से संपर्क करें।
ऐेसे किसान जिनके पास पांच ढा़ई एकड़ तक सूखी जमीन हो या ढाई एकड़ की गीली जमीन हो वह छोटे किसान कहलाते हैं और वो 90 फीसदी तक सब्सिडी के हकदार होते हैं। हालांकि सब्सिडी की यह मात्रा एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग होती है। इसकी जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी बागबानी/कृषि विभाग से संपर्क करें।
ऐेसे किसान जिनके पास पांच एकड़ से ज्यादा सूखी जमीन हो या ढाई एकड़ से ज्यादा गीली जमीन हो वो दूसरे किसान कहलाते हैं और वो 60 से 80फीसदी तक सब्सिडी के हकदार होते हैं। हालांकि सब्सिडी की यह मात्रा एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग होती है। इसकी जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी बागबानी/कृषि विभाग से संपर्क करें।
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