भारत देश के कृषि में कपास एक महत्वपूर्ण नगद फसल है। कपास बडे पैमाने पर खरीफ सीझन में उगायी जाती है। कपास का उत्पन्न बढाने के लिये उन्नत बीज, उन्नत किस्म, उन्नत कृषि कार्य एवं पानी और खाद व्यवस्थापन बहुत मायने रखते है।
कपास को ज्यादा पानी दिया जाये तो नुकसान हो सकता है वैसेही कम दिया जाये तो भी नुकसान होता है। इसलिये कपास के लिये पानी का व्यवस्थापन अगर सही ढंग से करना हो तो सिंचाई कि व्यवस्था अच्छी होनी चाहिये। इसलिये कपास के लिये टपक सिंचाई का इस्तमाल यही सही हल है। टपक सिंचाई कि माध्यम से हम पानी और खाद सीधे पौधों के जड क्षेत्र में गिनकर दे सकते है।
कपास – सिंचाई व जल निकास
कपास की उपज पर सिंचाई एवं जल निकास का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए। यदि वर्षा न हो तो 2-3 सप्ताह के अंतर से सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस बात का विशेष ध्यान रखे कि फूल व गूलर बनते समय पानी की कमी कदापि न हो अन्यथा कलियां फूलों व गूलरों का अत्यधिक झरण होगा। यदि दोपहर में पौधों की पत्तियां मुरझाने लगे तो सिंचाई कर देनी चाहिए। मध्य सितम्बर में भी कभी-कभी पानी की आवश्यकता पड़ती है। इस समय सिंचाई करने से गूलर शीघ्र फटते हैं। सिंचाई करते समय सावधानी रखनी चाहिए कि पानी हल्का लगाया जावे और पौधों के पास न रूके। फसल बढ़वार के समय वर्षा का पानी खेत में प्रायः रूक जाने से वायु संचार रूक जाता है पौधे पीले पड़कर मर जाते है। अतः इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पौधे के पास रूकने वाले पानी को यथाशीघ्र निकाल दें। खेत में जल निकास हेतु एक मुख्य नाली का भी होना आवश्यक है।
कपास गहरी जड वाली फसल है l इसकी जडे एक मीटर से भी ज्यादा गहराई तक जाती है l अतः खेत में गहरी जुताई करके खेत को अच्छी तरह तैयार करें l पलेवा ( रोणी) के समय गहरी सिंचाई करे l गहरी रोणी करने पर फसल मी गर्मी ( लु ) सहने कि क्षमता बढ जाती है तथा पौधें तेज गर्मी में भी कम मरते है l जिससे इकाई क्षेत्र में पौधों कि पुरी संख्या रहती है और पैदावार अच्छी प्राप्त होती है l
कपास में सिंचाई कि क्रांतिक अवस्थाये
1) सिम्पोडीया, शाखायें निकलने कि अवस्था एवं 45 से 50 दिन फुल पुडी बनने कि अवस्था l
2) फुल एवं फल बनने कि अवस्था – 75 से 85 दिन l
3) अधिकतम घेटों कि अवस्था – 95 से 105 दिन l
4) घेरे वृद्धी एवं खुलने कि अवस्था – 115 से 125 दिन l
बुंद – बुंद सिंचाई पद्धती – ड्रिप इरिगेशन
इसमे जल का उपयोग मंद गतीसे, बुंद – बुंद करके, फसल के जड क्षेत्र में किया जाता है l इसके लिये जिस उपकरण का प्रयोग किया जाता है उसके तीन भाग होते है, पहला भाग एक पंपिंग युनिट है जो लगभग 2.5 किलोग्राम प्रती वर्ग सेंटीमीटर का जल दाब उत्पन्न करती है l इसका दुसरा भाग एक पाईपलाईन होता है जो पी.वी.सी का बना होता है और तिसरा भाग ड्रिप लाईन तथा जिसमे ड्रिपर लगे होते है जिनमेसे पानी पौधों के पास टपकता है l
जल को कुए या डिग्गी से उठाकर पाईपलाईन कि माध्यम से ड्रिपर तक निश्चित दाब पर पहुंचाया जाता है, जिससे जल बुंद – बुंद करके पौधे के पास टपकता है और भूमिद्वारा अवशोषित किया जाता है l इस विधी से पौधों को जल कि पूर्ती लगातार जारी रहती है जिसमे पौधे कि बढवार तथा विकास अच्छा होता है l इससे अधिक पैदावार के साथ साथ उत्पाद के गुणवत्ता में भी वृद्धी होती है l
इस विधी में जल का उपयोग वहन द्वारा, रीसाव द्वारा होता है तथा भूमि सतह पर वाष्पन द्वारा जल हानी नही होती है l अतः इस विधी में सिंचाई दक्षता अत्याधिक है l यह विधी शुष्क क्षेत्रों के लिये अत्यंत उपयोगी है l यह विधी बागों, सब्जियो तथा चौडी कतार वाली फसलों जैसे कि कपास, गन्ना आदी के लिये अत्यंत उपयोगी है l
हिरा अॅग्रो इंडस्ट्रीज, जलगाँव ( महाराष्ट्र ) इंचाई क्षेत्र में एक नामचीन कंपनी है जो उच्चतम दर्जे कि ड्रिप बनाती है जिसका उपयोग कपास के सिंचाई के लिये किया जाये तो पैदावार के साथ साथ कपास कि गुणवत्ता में भी वृद्धी आसानी और कम लागत पर हो सकती है l
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